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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल को क्यों लगाया जाता हैं छप्पन भोग? जानिए महत्व

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2024 : देशभर में आज भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। इस खास मौके पर श्रीकृष्ण के मंदिरों का भव्य रूप से सजाया गया है और 26 अगस्त की मध्य रात्रि को बड़े धूमधाम से लड्डू गोपाल का प्रकटोत्सव मनाया जाएगा।

Janamashtmi 2023: क्या होता है 56 भोग? क्यों लगाया जाता है कान्हा जी को ये  भोग, पढ़ें पूरी कहानी - Janmashtami 2023 What is 56 Bhog Why this bhog is  offered to

धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि में भगवान कृष्ण का मथुरा में जन्म हुआ था। इस दिन मथुरा,वृन्दावन समेत देश-दुनिया के कृष्ण मंदिरों में भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। बाल गोपाल को झूले में विराजमान करके उन्हें 56 भोग लगाया जाता है और अष्ट प्रहर की पूजा की जाती है। जन्माष्टमी पर 56 भोग का बड़ा महत्व है।

कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ मौके पर लड्डू गोपाल को भोग लगाने के लिए सात्विक भोजन तैयार किया जाता है। छप्पन भोग में मीठा, खट्टा,मसालेदार, नमकीन और कड़वा समेत 5 तरीके के स्वाद का भोजन का भोग लगाया जाता है। विष्णु के आठवें अवतार प्रभु श्रीकृष्ण को छप्पन भोग अति प्रिय होता है।

  • कृष्ण भोग : जन्माष्टमी पर कृष्ण जी को कढ़ी, पूरी, खीर, सूजी का हलवा या लड्डू, पूरनपोली,मालपुआ,केसर भात, मीठे फल और कलाकंद का भोग लगाया जाता है।
  • कृष्ण फल : कान्हा को केला,नारियल,सेब,अमरूद,अनार, सीताफल, पपीता,खजूर,नील बदरी,आंवला,शहतूत,गन्ना और बेर इत्यादि का भोग लगाया जाता है।
  • कृष्ण प्रसाद: इसके अलावा बाल गोपाल को माखन-मिश्री,पंचामृत,नारियल,सुखे मेवे और धनिया पंजीरी का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

  • कृष्ण मिठाई : कृष्ण जन्मोत्सव के मौके पर कान्हा को पीले पेड़े, रसगुल्ला,मोहन भोग, मखाना पाग, घेवर, जलेबी, रबड़ी, बूंदी, बेसन का लड्डू, मथुरा पेड़ा और मिठाई का भोग लगाया जाता है।

कृष्ण जन्मोत्सव के मौके पर लड्डू गोपाल को 56 प्रकार के अलग-अलग व्यंजनों का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसे ही 56 भोग कहा जाता है।

 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रज में हर साल देवरान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए उत्सव रखा जाता था। एक बार बाल गोपाल ने नंद बाबा से पूछा कि इंद्र देवता को प्रसन्न करने के लिए महोत्सव क्यों रखा जाता है? नंद बाबा ने कान्हा को बताया कि यह महोत्सव और पूजा इसलिए की जाती है, ताकि इंद्रदेव के प्रसन्न होने से सालभर भरपूर वर्षा हो। कान्हा ने कहा कि वर्षा के लिए इंद्र देव की पूजा के बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। यह जानवरों को फल, सब्जियां और चारा प्रदान करते हैं। प्रभु श्रीकृष्ण की यह बात सुनकर इंद्र देवता नाराज हो गाएं और गुस्से में उन्हें ब्रज में भारी बारिश करवा दी, जिससे वहां बाढ़ आ गई। ब्रजवासी को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को 7 दिनों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए उठाया था। आठवें दिन वर्षा समाप्त होने के बाद कान्हा ने ब्रजवासियों को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकलने दिया। 8 दिन में 8 पहर भोजन करने वाले मां यशोदा के लाडले को 7 दिनों तक भूखा रहना यशौदा मैया और ब्रज वासियों के लिए काफी कष्टदायी हुआ। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धाभाव को व्यक्त करते हुए सभी ब्रजवासियों और यशोदा मां ने आठ पहर के हिसाब से 7×8=56 अलग-अलग व्यंजन तैयार करके बाल गोपाल को भोग लगाया था। तभी से ब्रज के मंदिरों में अष्ट प्रहर की पूजा में प्रभु श्रीकृष्ण को 56 भोग अर्पित किया जाता है।

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