पेरिस ओलंपिक में जैवलिन थ्रो में सिल्वर मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा के जीवन की कहानियां बेहद दिलचस्प हैं. आज जिस नीरज चोपड़ा को हम देख रहे हैं, वह बचपन में वैसे नहीं थे.
बचपन में उनका वजन ज्यादा था, इसलिए बच्चे उनका मजाक उड़ाया करते थे. हालत यह थी कि उनके मोटापे से उनके परिवार वाले भी परेशान थे.
असल में, मोटापा कम करने के लिए उन्होंने स्टेडियम जाना शुरू किया और धीरे-धीरे उनकी रुचि भाला फेंकने में हो गई. उनका मन इसी खेल में ऐसा रम गया कि वह ओलंपिक तक पहुंच गए.
दिलचस्प है बचपन की कहानी
जैवलिन थ्रो के भारतीय एथलीट नीरज चोपड़ा का जन्म हरियाणा में हुआ. वह पानीपत के खंडरा गांव के रहने वाले हैं. कई मीडिया रिपोर्ट्स में उनके परिवार वालों के हवाले से बताया गया है कि नीरज चोपड़ा बचपन में काफी मोटे हुआ करते थे.
मोटापा इतना था कि बच्चे उन्हें चिढ़ाते थे और हर तरफ उनका मजाक बनता था. परिवार वाले भी उनके मोटापे को लेकर परेशान रहते थे, जिसके बाद उनके चाचा, नीरज को 13 साल की उम्र में दौड़ लगाने के लिए स्टेडियम ले जाने लगे.
स्टेडियम में देखा भाला फेंकना
मोटापा कम करने के लिए नीरज चोपड़ा स्टेडियम तो जाने लगे, लेकिन उनका मन दौड़ में नहीं लगता था. इसी दौरान उन्होंने दूसरे खिलाड़ियों को भाला फेंकते हुए देखा और उन्होंने भी इसे आजमाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते उन्हें इस खेल में रुचि आने लगी, और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
हरियाणा की माटी से निकला यह होनहार अब न केवल अपना नाम रोशन कर रहा है, बल्कि दुनिया के फलक पर हिंदुस्तान का नाम भी रोशन कर रहा है. टोक्यो ओलंपिक में वह गोल्ड मेडल भी जीत चुके हैं.
ऐसे मिली थी आर्मी में नौकरी
नीरज चोपड़ा ने राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीते. वर्ष 2016 में पोलैंड में हुए आईएएएफ वर्ल्ड यू-20 चैंपियनशिप में नीरज ने गोल्ड जीतकर देश का दिल जीत लिया.
इस प्रतियोगिता में नीरज ने 86.48 मीटर दूर भाला फेंका था, जिसके बाद सरकार ने उन्हें इनाम में भारतीय आर्मी में नौकरी दे दी. उन्हें राजपूताना रेजिमेंट में बतौर जूनियर कमीशंड ऑफिसर (JCO) के पद पर नियुक्त किया गया. टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के बाद उन्हें प्रमोट करके नायब सूबेदार का पद दे दिया गया.
भारतीय सेना में सरकारी नौकरी मिलने के बाद नीरज चोपड़ा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. नौकरी मिलने के बाद उन्होंने अपने इंटरव्यू में इस खुशी का इजहार भी किया.
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