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सहरसा के इन धार्मिक स्थानों पर श्रद्धालुओं का लगा रहता है तांता, ये हैं टॉप टूरिस्ट प्लेस

सहरसा: बिहार के प्रमुख जिलों में से एक सहरसा है। इस जिले का गठन 1 अप्रैल साल 1954 में हुआ था। पटना से सहरसा की दूरी करीब 180 किलोमीटर है। अगर इसके इतिहास की बात करें तो प्राचीन काल में सहरसा मिथिला राज्य का हिस्सा हुआ करता था। अगर टूरिस्ट प्लेस की बात करें तो कोसी नदी के पूर्वी तट बसे सहरसा में  कई ऐतिहासिक और धार्मिक तीर्थ स्थल हैं। जहां पर्यटक और श्रद्धालुओं भी भीड़ लगी रहती है।

These five Shaktipeeths are present near Saharsa district every year lakhs  of devotees visit - सहरसा जिले के पास मौजूद है ये पांच शक्तिपीठ, हर साल  लाखों भक्त करते हैं दर्शन

उग्रतारा स्थान

सहरसा मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर महिषी गांव में उग्रतारा स्थान है। यहां भगवती तारा की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। इसी स्थान पर आदिशंकराचार्य शास्त्रार्थ में मंडन मिश्र की पत्नी विदुषी भारती से हार गए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी सती की बायी आंख इसी स्थान पर गिरी थी। नवरात्र के दिनों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। इसके अलावा यहां देश के विभिन्न हिस्सों तांत्रिक भी तंत्र साधना के लिए आते हैं।

संत बाबा कारू खिरहरी

सहरसा के कोसी के कछार पर स्थित संत बाबा कारू खिरहरी खास है। ये मंदिर शिवभक्त, संत बाबा कारू खिरहरी पर कई क्विंटल दूध चढ़ाते हैं। यहां खीर का भोग भी लगता है। मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां बीमार पशु लाने पर ठीक होते हैं।

सूर्य मंदिर

सहरसा मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर सूर्य मंदिर कन्दाहा स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में सात घाड़ों वाले रथ पर सवार सूर्य की भव्य ग्रेनाइट की प्रतिमा है। इतिहासकारों के मुताबिक 14वीं शताब्दी में कर्नाटक वंश के राजा नरसिंह देव के अवधि के दौरान बनवाया गया था। मंदिर में बारह  सराशियों की कलाकृति भी बना है। इसके अलावा यहां अष्टभुजी गणेश की प्रतिमा भी देखने को मिल जाता है।

चंडी स्थान

सहरसा के विराटपुर में स्थित चंडी स्थान है। ऐसा कहा जाता कि यहां देवी चंडी खुद अवतरित हुई थीं। वहीं मंदिर का इतिहास महाभारत काल से है। ऐसा कहा जाता है कि निर्वासन काल के दौरान पांडव यहां रुककर देवी चंडी की पूजा अर्चना की थी।

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