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छठ महापर्वः बिहार के इस सूर्य मंदिर में 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालु करते हैं पूजा

छठ महापर्व के अवसर पर बिहार के औरंगाबाद जिले के देव में स्थित विश्व विख्यात शुरू मंदिर में आस्था का महा सैलाब उमड़ता है। देश के कई राज्यों से लाखों लोग सूर्य मंदिर परिसर स्थित तालाब में छठ व्रत करने आते हैं। देव सूर्य मंदिर में छठ व्रत करने का विशेष महत्व है। नहाए-खाए से शुरू होकर पारण के दिन तक यहां चार दिवसीय मेला का आयोजन किया जाता है।

छठ महापर्वः बिहार के इस सूर्य मंदिर में 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालु करते हैं पूजा, ढाई लाख साल का इतिहास; 4 दिनों का लगता है मेला

राजा ऐल ने त्रेता में कराया था निर्माण

मंदिर के एक शिलालेख के मुताबिक यह मंदिर लगभग ढाई लाख वर्ष पुराना है। इसका निर्माण इला के पुत्र राजा ऐल ने त्रेतायुग में कराया था।  मान्यता है कि राजा कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। एक बार शिकार करते हुए इसी इलाके में पहुंच गए। यहां गड्ढे में पानी मौजूद था।  राजा ने गड्ढे के पानी से अपने शरीर पर लगे गन्दगी की सफाई की।  कहा जाता है कि जहां जहां उन्होंने गड्ढे के पानी से सफाई की, उस इलाके का कुष्ठ रोग भी ठीक हो गया। उसी रात राजा ऐल को सपना आया कि गड्ढे के नीचे मूर्तियां है।  उन मूर्तियों का निकलवा कर मंदिर बनवा कर स्थापित कराया जाए।  इसी से प्रभावित होकर उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण कराया।

कुष्ठ रोग से मिलती है मुक्ति

सूर्य मंदिर के प्रधान पुजारी सच्चिदानंद पाठक कहते हैं कि मंदिर परिसर में स्थित सूर्य कुंड में कुष्ठ रोग से पीड़ित लोग स्नान करते हैं तो उनकी बीमारी दूर हो जाती है। भगवान सूर्य के गर्भ गृह में 3 देवताओं की मूर्तियां हैं।  उनकी भी पूजा की जाती है।

भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था एक रात में 3 मंदिर

एक किंवदंती है कि भगवान विश्वकर्मा ने औरंगाबाद में तीन स्थानों पर एक ही रात में सूर्य मंदिरों का निर्माण किया था। एक मंदिर मदनपुर के उमगा में अवस्थित है। दूसरा मंदिर देव में है और तीसरा मंदिर देवकुंड में स्थित है। कहा जाता है कि देवकुंड का मंदिर बनाते बनाते सुबह हो गई और उसका निर्माण अधूरा रह गया। भगवान विश्वकर्मा दिन होने पर चले गए  और आज भी इसका निर्माण पूरा नहीं हो सका। देवकुंड में भगवान सूर्य के साथ भगवान शिव को विस्थापित किया गया है।

अद्भूत शिल्प वाला मंदिर

औरंगाबाद के देव स्थित सूर्य मंदिर मंदिर स्थापत्य कला अद्भुत है। इस मंदिर के निर्माण में दीवारों की कहीं भी जुड़ाई नहीं की गई है।  इसमें चूना, सुर्खी, सीमेंट जैसे किसी भी पदार्थ का उपयोग नहीं किया गया है। एक के ऊपर एक पत्थरों को रखकर मंदिर बनाया गया है। मंदिर दीवार में कहीं-कहीं पड़ी दरार से मंदिर का यह सिर्फ साफ साफ दिखाई पड़ता है।

कोनार्क की तर्ज पर देवार्क भी कहा जाता है

इस मंदिर को कोणार्क मंदिर की तर्ज पर देवार्क की भी कहा जाता है।  छठ पर्व के मौके पर कार्तिक महीने में लगभग 12 लाख से ज्यादा लोग यहां जुट कर पूजा करते हैं। बिहार से सीमावर्ती राज्य झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश के अलावे उन सभी राज्यों से श्रद्धालु यहां आते हैं जहां छठ मनाया जाता है। देव का सूर्य मंदिर छोटे से प्रखंड के मुख्यालय में स्थित है जहां आज तक धर्मशाला और होटल की कमी है । बावजूद इसके आस्था से बंधे लाखों लोग यहां पहुंचते हैं।  स्थानीय गांव वाले यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं कि रहने और भोजन का प्रबंध करते हैं।  महीनों पहले गांव में कमरों की बुकिंग हो जाती है।

छठ महापर्व के मौके पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है। मेला 4 दिनों तक चलता है। नहाए खाए से शुरू होकर कारण के दिन तक मेला लगता है जिसमें देशभर के लोग शामिल होते हैं। देव सूर्य मंदिर में  चौबीसों घंटे अर्घ्य दिया जाता है। माना जाता है कि भगवान भास्कर अस्ताचलगामी, मध्यगामी और उदयगामी स्वरूप  विद्यमान हैं। इसलिए पहले दिन का अर्घ्य शुरू होने के बाद लगातार चलता रहता है। स्थानीय लोगों की मदद से मंदिर प्रबंधन द्वारा बैच बनाकर श्रद्धालुओं का अर्घ्य दिलवाया जाता है।

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