भगवान गणेश जी के जन्मोत्सव को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से 10 दिनों का गणेश उत्सव मनाया जाता है। इन दिनों में गणपति बप्पा की विधि-विधान से पूजा की जाती है। ज्योतिष में गणेश जी को बुद्धि और सुख-समृद्धि का दाता माना गया है।
ज्योतिष के अनुसार, गणेशजी का जन्म मध्याह्न में हुआ था। इसलिए मध्याह्न काल गणेश जी की पूजा के लिए उत्तम माना गया है। दृक पंचांग के अनुसार, इस साल 7 सितंबर से गणेशोत्सव का आरंभ होगा और 10 दिन के बाद 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी गणेशजी की प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा।
दृक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का आरंभ 06 सितंबर को दोपहर 03:01 पीएम पर होगा और अगले दिन 07 सितंबर को शाम 05:37 पीएम पर समाप्त होगा। इसलिए उदयातिथि को ध्यान में रखते हुए 07 सितंबर से गणेशोत्सव शुरू होगा।
- मध्याह्न काल गणेश पूजन मुहूर्त : दृक पंचांग के अनुसार, इस दिन मध्याह्न काल गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त 11:03 ए एम से 01:34 पी एम तक रहेगा।
- वर्जित चंद्रदर्शन का समय : दृक पंचांग के अनुसार,07 सितंबर को 09:30 ए एम से 08:45 पी एम तक चंद्रदर्शन वर्जित रहेगा। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र-दर्शन का वर्जित माना गया है। मान्यता है कि इस दिन चन्द्र दर्शन करने से मिथ्या दोष या कलंक लगता है।
गणेश चतुर्थी की पूजन विधि :
- गणेश चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठें। स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- घर का मंदिर साफ कर लें। एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछा दें।
- अब शुभ मुहूर्त में पूर्व या उत्तर दिशा में गणेशजी की मूर्ति स्थापित करें।
- गणेश जी की प्रतिमा के साथ रिद्धि-सिद्धि को स्थापित करें।
- अब गणेशजी को हल्दी, दूर्वा, इत्र, मोदक, चंदन, अक्षत समेत सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं।
- गणेश जी को धूप-दीप दिखाएं और गणेश जी के साथ सभी देवताओं की आरती उतारें।
- पूजा के दौरान गणेश जी के बीज मंत्र ‘ऊँ गं गणपतये नमः’ का जाप कर सकते हैं।
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