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अपना शहर मुजफ्फरपुर: मुजफ्फरपुर का गौरवशाली इतिहास और विशेषताएं …..

मुजफ्फरपुर: मुजफ्फरपुर उत्तरी बिहार राज्य के सबसे बड़े शहर, तिरहुत मंडल का मुख्यालय तथा मुजफ्फरपुर ज़िले का प्रमुख नगर एवं मुख्यालय है। अपने सूती वस्त्र उद्योग तथा आम और लीची जैसे फलों के उम्दा उत्पादन के लिए यह जिला पूरे विश्व में जाना जाता है, खासकर यहां की शाही लीची का कोई जोड़ नहीं। वहीं भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक को यहां से लिच्ची भेजी जाती है।

Export of first batch of Shahi litchi from Bihar to Britain Ministry of  Commerce | कोरोना काल के बावजूद भारत की शाही लीची पर 'ललचाया' ब्रिटेन, भेजी  गई पहली खेप । Hindi

तिरहुत कहलाने वाले इस क्षेत्र का उल्लेख रामायण जैसे ग्रंथों में मिलता है परंतु इसका लिखित इतिहास वैशाली के उदभव के समय से उपलब्ध है। मिथिला के राजा जनक के समय तिरहुत प्रदेश मिथिला का अंग था। बाद में राजनैतिक शक्ति विदेह से वैशाली की ओर हस्तांतरित हुआ। तीसरी सदी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों से यह पता चलता है कि यह क्षेत्र काफी समय तक महाराजा हर्षवर्धन के शासन में रहा। उनके नहीं रहने के बाद स्थानीय क्षत्रपों का कुछ समय शासन रहा तथा आठवीं सदी के बाद यहाँ बंगाल के पाल वंश के शासकों का शासन शुरु हुआ जो 1019 तक जारी रहा।

तिरहुत पर लगभग 11 वीं सदी में चेदि वंश का भी कुछ समय शासन रहा। सन 1211 से 1226 बीच गैसुद्दीन एवाज़ तिरहुत का पहला मुसलमान शासक बना। चम्पारण के सिमराँव वंश के शासक हरसिंह देव के समय 1323 ईस्वी में तुग़लक वंश के शासक गयासुद्दीन तुग़लक ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया लेकिन उसने सत्ता मिथिला के शासक कामेश्वर ठाकुर को सौंप दी। चौदहवीं सदी के अंत में तिरहुत समेत पूरे उत्तरी बिहार का नियंत्रण जौनपुर के राजाओं के हाथ में चला गया जो तबतक जारी रहा जबतक दिल्ली सल्तनत के सिकन्दर लोदी ने जौनपुर के शासकों को हराकर अपना शासन स्थापित नहीं किया। इसके बाद विभिन्न मुग़ल शासकों और बंगाल के नवाबों के प्रतिनिधि इस क्षेत्र का शासन चलाते रहे। पठान सरदार दाऊद खान को हराने के बाद मुगलों ने नए बिहार प्रांत का गठन किया जिसमें तिरहुत को शामिल कर लिया गया।

1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद यह क्षेत्र सीधे तौर पर अंग्रेजी हुकूमत के अधीन हो गया। सन 1875 में प्रशासनिक सुविधा के लिये तिरहुत का गठन कर मुजफ्फरपुर जिला बनाया गया। मुजफ्फरपुर ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूरण भूमिका निभाई है। महात्मा गाँधी की दो यात्राओं ने इस क्षेत्र के लोगों में स्वाधीनता के चाह की नयी जान फूँकी थी। खुदीराम बोस तथा जुब्बा साहनी जैसे अनेक क्रांतिकारियों की यह कर्मभूमि रही है। 1930 के नमक आन्दोलन से लेकर 1942 के भारत छोडो आन्दोलन के समय तक यहाँ के क्रांतिकारियों के कदम लगातार आगे बढ़ते रहे।

मुजफ्फरपुर का वर्तमान नाम ब्रिटिस काल के राजस्व अधिकारी मुजफ्फर खान के नाम पर पड़ा है। 1972 तक मुजफ्फरपुर जिले में शिवहर, सीतामढी तथा वैशाली जिला शामिल था। मुजफ्फरपुर को इस्लामी और हिन्दू सभ्यताओं की मिलन स्थली के रूप में भी देखा जाता रहा है। दोनों सभ्यताओं के रंग यहाँ गहरे मिले हुये हैं और यही इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान भी है।

बसोकुंड:
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली के निकट बसोकुंड में लिच्छवी कुल में हुआ था। यह स्थान जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र है। यहाँ अहिंसा एवं प्राकृत शिक्षा संस्थान भी है।

जुब्बा साहनी पार्क:
भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जुब्बा साहनी ने16अगस्त 1942 को मीनापुर थाने के इंचार्ज लियो वालर को आग में जिंदा झोंक दिया था। बाद में पकड़े जाने पर उन्हें 11 मार्च 1944 को फांसी दे दी गयी। जिले के इस महान स्वतंत्रता सेनानी की याद में बनाया गया पार्क दर्शनीय है।

Jubba Sahni Park Entry Timing/जुब्बा सहनी पार्क इतिहास, 1 No

बा‍बा गरीबनाथ मंदिर:
मुजफ्फरपुर के इस शिव मंदिर को देवघर के समान आदर प्राप्त है। सावन के महीने में यहाँ शिवलिंग का जलाभिषेक करने वालों भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

देवी मंदिर

Devi Mandir, Muzaffarpur is one of holiest places along with Baba Garib  nath Temple in Muzaffarpur | Muzaffarpur City : Breaking News

कोठिया मजार (कांटी)
शिरूकहीं शरीफ (कांटी):-तेगे अली शाह का मज़ार।
शहीद खुदीराम स्‍मारक
मज़ार हज़रत दाता कम्मल शाह
मज़ार हज़रत दाता मुज़फ़्फ़रशाह इन्ही के नाम से जिला का नाम है चामुडा स्थान, कटरा।
सूफी मौलाना इब्राहिम रहमानी मजार इस्लामपुर

 

 

 

 

 

 

 

 

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