मुजफ्फरपुर: मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी प्रखंड का बड़ा सुमेरा मुर्गिया चक गांव में बनी सुरीली बांसुरी की तान नेपाल से बांग्लादेश तक गूंजती है। इस गांव 15 मुस्लिम परिवार बांसुरी बनाने का काम करते हैं। आज इन परिवारों की चौथी पीढ़ी बांसुरी बना रही है। पूरे बिहार में मुर्गिया चक में बनी बांसुरी की जबर्दस्त मांग है। इन परिवारों के बड़े से लेकर बच्चे तक पूरे दिन बांसुरी बनाने में व्यस्त रहते हैं। गांव के नूर मोहम्मद बताते हैं कि वे 10 साल की उम्र से बांसुरी बना रहे हैं।
मोबाइल की वजह से डिमांड में कमी
पहले मेला व पर्व-त्योहारों पर बांसुरी की खूब मांग होती थी, लेकिन मोबाइल ने उनकी आय पर बुरा असर डाला है। अब बच्चे और लोग मोबाइल पर ही ज्यादा समय दे रहे हैं। इससे बांसुरी की मांग कम हो रही है। पहले जब बांसुरी बेचने वाला शहरों या गांवों में गली-मोहल्लों से निकलता था तो लोग उसकी सुरीली तान सुन आकर्षित और आंनदित होते थे। अच्छी मुरली बजाने पर खुश होकर लोग इनाम भी देते थे। अब यह कम होता है।
बांसुरी के लिए करते हैं नरकट की खेती
बांसुरी बनाने में उपयोग किए जाने वाले नरकट की खेती भी इस गांव में होती है। इसके अलावा, दूसरे जिले से भी नरकट खरीदकर लाया जाता है। शहर के चंदवारा, बड़ा सुमेरा, लकड़ीढ़ाई, मोतीपुर में भी नरकट की खेती होती है। गांव के मो. रिजवान बताते हैं कि एक रुपये में नरकट खरीद कर लाते हैं। एक बांसुरी बनाने में कम से कम चार से पांच रुपये खर्च आता है। एक दिन में 100 से 110 बांसुरी बनायी जाती है। रिजवाना खातून बताती हैं कि बांसुरी बनाकर ही परिवार का भरण पोषण होता है। वे लोग दूसरा और कोईकाम नहीं करते।
बांसुरी बनाने वाले परिवारों की पीड़ा
बांसुरी बनाने वाले इन परिवारों की पीड़ा है कि उन्हें इस हुनर को बनाए और बचाए रखने के लिए कहीं से कोई मदद नहीं मिल रही है। सरकार की ओर से कुटीर उद्योग के रूप में कुछ अनुदान मिलेतो बड़ी राहत मिलेगी। स्थानीय समाजसेवी शशिकांत साह कहते हैं कि सरकार को बांसुरी बनाने वाले परिवारों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी चाहिए। इसके अलावा, नरकट की खेती के लिए बीज और अनुदान की व्यवस्था भी की जानी चाहिए।
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