दलीय सीमाओं को तोड़कर जनता ने जिन नेताओं को सिर-आंखों पर उठाया, उनमें रमई का नाम सबसे ऊपर है। रिकार्ड नौ बार विधायक व पांच बार मंत्री बनने का तिलिस्म शायद ही कोई तोड़ सके। फर्श से अर्श तक पहुंचे रमई राम पिछड़ों की आवाज कहे जाते थे तो अगड़ों से भी उन्हें स्नेह था।
रमई राम को नजदीक से जानने वाले उनके निकटतम राजद नेता इकबाल मोहम्मद समी बताते हैं कि उनके पिता का नाम किशुनी राम मोची था। गरीबी के कारण सातवीं में पढ़ने के दौरान ही रमई ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। राजीनीति में उनका प्रवेश भी धमाकेदार रहा। 1970 के कांग्रेस के दिग्गज नेता राम संजीवन ठाकुर को उन्होंने वार्ड आयुक्त के पद पर हराया। पिछड़ों के नेता होते हुए भी उनकी नजदीकी अगड़ों के तत्कालीन नेताओं महेश बाबू, रघुनाथ पांडेय, वीरेंद्र बाबू, उषा सिन्हा से भी थी, तो पिछड़ों की राजनीति करने वाले रामकरण सहनी, हलीम फरीदी, हकीम मोहम्मद समी के भी काफी करीब थे। अगड़ों व पिछड़ों का यही संतुलन साधकर वे 1972 में पहली बार बोचहां के विधायक बने।
पिछड़ों के छत्रप की छवि
1977 में वे कमल पासवान से पराजित हो गए लेकिन अगले चुनाव में ही 1980 में कमल पासवान को उन्होंने भारी मतों से हराया। 1990 में वे लालू प्रसाद के मंत्रीमंडल में लालू प्रसाद के बाद सबसे प्रभावी मंत्री के रूप में शामिल हुए।
निर्दलीय विधायक से मंत्री तक का सफर
1972 में वे पहली बार बोचहां के निर्दलीय विधायक बने व 1980 में जनता पार्टी से जुड़े और फिर विधायक बने। 1985 में वे फिर लोकदल से विधायक बने। 1990 व 1995 का चुनाव उन्होंने जनता दल से भारी मतों से जीता। वर्ष 2000 व 2005 में वे राजद से चुनाव जीतकर आये।
2009 में उन्होंने राजद का साथ छोड़ दिया व बेटी गीता कुमारी के साथ जदयू का दामन थामा। 2010 में वे एक बार फिर बोचहां में चुनावी जीत दर्ज की। 2009 में वे कांग्रेस के टिकट पर गोपालगंज से संसदीय चुनाव भी लड़े जहां उन्हें असफलता हाथ लगी। 2017 में वे फिर जदयू के जीतन राम मांझी सरकार में परिवहन मंत्री बने।
मंत्री बने तो बनवाया मां सरस्वती का मंदिर
ट्यूशन टीचर से मंत्री बनने तक के सफर में रमई ने कई उतार चढ़ाव देखे। 1990 में वे जब पहली बार मंत्री बने तो अपने कालीबाड़ी रोड स्थित आवास परिसर में सरस्वती का मंदिर बनवाया। राम विलास पासवान, शरद यादव जैसे दिग्गज कई बार सरस्वती पूजा का प्रसाद पाने उनके घर तक आये। उनका मानना था कि मंत्री बनने तक का सफर उन्होंने मां सरस्वती की कृपा से ही पूरी की है। हालांकि वे भोले बाबा के भी उपासक थे और मंत्री रहते हुए उन्होंने पहलेजा से बाबा गरीबनाथ धाम तक की पैदल कांवर यात्रा की। इसके अलावा से अजमेर शरीफ व दाता कम्बल शाह के मजार पर नियमित रूप से जाते थे।
अखाड़ाघाट पुल बनवाया तो टोल भी हटवाया
रमई राम के प्रयास से ही अखाड़ाघाट पुल का निर्माण हुआ, यह सभी जानते हैं। इसमें एक दिलचस्प कहानी और है। रमई राम जीप पर सवारी के शौकीन थे। एक दिन उनकी जीप अखाड़ाघाट पुल से गुजर रही थी तो टोलकर्मी ने उन्हें रोक दिया व पैसे की मांग की। रमई राम से विवाद के बाद जब टोल एजेंसी का हिसाब कराया तो पता चला कि निर्माण से कई गुना अधिक वसूली कराई जा चुकी है जिसे बंद कराया।
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