बिहार में कोरोना संक्रमण से लड़ाई में अब इस प्रदेश की गमछा संस्कृति को बढ़ावा देने की तैयारी है। मास्क के बदले गमछा के प्रचलन को जोर देने की कोशिशें जल्द दिखने वाली है। इसके लिए सरकार के दो सम्बद्ध महकमों उद्योग और कला संस्कृति विभाग ने तैयारियां आरंभ कर दी हैं।
लॉकडाउन के बाद अचानक से प्रदेश में गमछे की मांग बढ़ने की उम्मीद है। इसको लेकर उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान, हैंडलूम और खादी बोर्ड पर्याप्त संख्या में गमछे की उपलब्धता सुनिश्चित कराने में जुट गया है। बिहार के कला संस्कृति विभाग और उद्योग विभाग ने व्यवस्थागत तैयारियां आरंभ कर दी हैं ताकि कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए राज्यवासी मास्क की जगह गमछा का प्रयोग अधिकाधिक करें। गौरतलब है कि मास्क पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं, साथ ही उसके उपयोग की अवधि भी बहुत कम है। जबकि गमछा लम्बे समय तक व्यहृत हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पिछली बैठक में मास्क की जगह अपने मुंह को गमछे से ढंका था। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र बनारस के लोगों से टेलीफोनिक बातचीत में भी मास्क पर पैसा बर्बाद नहीं कर गमछा का इस्तेमाल करने को प्रेरित किया था। बिहार में भी कला संस्कृति मंत्री प्रमोद कुमार ने राज्य के कलाकारों व आम नागरिकों से अपनी दिनचर्या में फिर से गमछा को स्थान देने की अपील की है। कहा कि गमछा संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए उनका महकमा भी यथासंभव योजना बनाकर कार्यक्रम करेगा।
उधर उद्योग मंत्री श्याम रजक ने सोमवार को गमछा संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए गमछा के निर्माण से जुड़े तीन संगठनों संग करीब तीन घंटे तक बैठक की। बैठक में उपेन्द्र महारथी संस्थान, हैंडलूम निदेशालय और खादी बोर्ड के अफसर अलग-अलग शामिल हुए। उपेन्द्र महारथी संस्थान ने राज्य के बुनकरों से सम्पर्क कर करीब 50 हजार डिजाइनर गमछों की उपलब्धता सुनिश्चित करने का भरोसा दिया। वहीं खादी बोर्ड ने उससे जुड़ी 19 संस्थाओं के पास पर्याप्त गमछा होने की बात कही। खादी बोर्ड और बुनकरों के गमछे की कीमत फिलहाल 50 से 60 रुपए है। मंत्री श्री रजक ने इसकी कीमत कम कर 35-40 तक बेचने का निर्देश दिया।
बिहारियों के मान-सम्मान से जुड़ा है गमछा
गमछा केवल एक वस्त्र नहीं, बिहारियों की वेशभूषा की प्रमुख पहचान और मान-सम्मान से जुड़ा एक वस्त्र है। धोती, लुंगी, पायजामा धारण करने वाले अब भी गमछा लेना नहीं भूलते। गमछा जहां देह पर अंगरखा बनता है वहीं माथे पर मुरेठा के रूप में सजता है।
Source: Hindustan
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