मुजफ्फरपुर : कांटी और आसपास के इलाके में लीची के बागों में स्टिंक बग का प्रको’प बढ़ गया है। तेज आंधी-पानी की मा’र झेलने के बाद अब कीटों ने किसानों की परे’शानी बढ़ा दी है। पिछले साल भी बागों में मंजर व फलों को स्टिंक बग ने नुक’सान पहुंचाया था। कीटों के अधिक रस चूसने से बढ़ती कलियां और कोमल अंकुर सूख जाते हैं। फल काले पड़ने लगते हैं, जिससे फूल और फल गिर जाते हैं।
इसको लेकर मुशहरी स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र की ओर से भी किसानों के लिए अल’र्ट जारी किया गया है। आमतौर पर कीट अप्रैल के अंतिम सप्ताह से लीची पर दिखाई देते हैं। अगस्त के अंतिम सप्ताह के बाद बागों से गायब हो जाते हैं। स्टिंक बग ख’राब गं’धित रसायन छोड़ते हैं।
कांटी के सदातपुर निवासी किसान राजेश कुमार राय द्वारा बताया गया कि ढाई एकड़ में लीची का बाग है। करीब-करीब हर पेड़ पर स्टिंक बग का प्रको’प दिख रहा है। लीची में लाली आने वाली है। उम्मीद थी कि इस बार अच्छी कीमत मिलेगी। कोरोना की वजह से पिछले दो साल में हुए नुक’सान की भारपाई होगी, लेकिन स्टिंग बग से नु’कसान हो रहा है। शाही और चाइना लीची के फल टूटकर गिर रहे हैं।
अनसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. एसडी पांडेय ने बताया कि स्टिंक बग से काफी नुकसान पहुंचता है। कीट पर नियंत्रण के लिए ट्राइजोफास 40 ई.सी. (1.5 मिली) व थियाक्लोप्रिड 21.7 एससी (0.5 मिली), थियाक्लोप्रिड 21.7 एससी (0.5 मिली) व लैम्बडा साइहैलोथ्रिन पांच इसी (1.0 एमएल), थियाक्लोप्रिड 21.7 एससी (0.5 मिली) व फिप्रोनिल पांच एससी (1.5 एमएल), डाइमेथोएट 30 एससी (1.5 एमएल) व लैम्बडा साइहैलोथ्रिन पांच इसी (1.0 एमएल), डाइमेथोएट 30 एससी (1.5 एमएल) व साइपरमेथ्रिन पांच इसी (1.0 एमएल), (संयुक्त उत्पाद ट्रायजोफॉस 35 व डेल्टामेथ्रिन एक इसी) 2.0 एमएल, की’टनाशी के घोल में स्टीकर का इस्तेमाल 0.4 एमएल प्रति लीटर की दर से स्प्रे करना चाहिए।
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