Press "Enter" to skip to content

होली में डंफ, झाल व करताल की छवि, क्यों हैं विलुप्त होने की कगार पर, जानें….

बिहार : होली का मतलब है मुआ, पूड़ी, दहीबड़ा व बड़ा खाना के साथ डंफ, झाल व करताल के साथ चौकड़ी लगाना। पारंपरिक होली लोकगीत पर झूमना। मस्ती से नाचना। एक दूसरे के साथ रंग, गुलाल के साथ आपसी सौहाद्र बांटना। लेकिन कुछ सालों में ये सब विलुप्त होने के कगार पर है। पारंपरिक गीतों की जगह कैसेट व डीजे की फूहर संगीत स्थान ले लिया। वहीं डंफ, झाल व करताल की जगह डिब्बा, ढक्कन व कंटर ले लिया है। लेकिन इसके बावजूद होली की हुड़दंग व मस्ती कम नहीं हुई। पीढ़ी दर पीढ़ी होली का स्वरूप बदल रहा है। पहले गांव-घर में फालुन के आते ही गांव-जावर में टोली बनकर होली शुरू हो जाती थी।।लेकिन अब यह सिर्फ खाने-खिलाने तक ही सिमटती जा रही है।इधर, मोतीपुर प्रखंड के बरना बांसघाट में एक साथ कई पीढ़ी ने जमकर होली खेला। यहां डंफ की धाप के बदले प्लास्टिक के डिब्बा पर ही लोगों ने जमकर होली की पारंपरिक धुनों पर मजा किया। इसके अलावा कांटी प्रखंड के बकटपुर गांव स्थित मंदिर पर डंफ, झाल पर लोगों ने जमकर होली गया। मुआ पालपुआ बांटा। एक दूसरे को बधाई दी। जोगीरा…भी गया। ब्रह्मपुरा के राहुल नगर में भी युवाओं ने होली जमकर खेला। बच्चों ने भी घर घर जाकर रंग गुलाल खेले व बधाई दी।

Share This Article
More from BIHARMore posts in BIHAR »
More from LatestMore posts in Latest »
More from MUZAFFARPURMore posts in MUZAFFARPUR »

Be First to Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *