बिहार में स्कूली शिक्षा में ड्रॉपआउट की सम’स्या खत्म नहीं हो रही है। राज्य के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक के साथ माध्यमिक विद्यालयों में भी नामांकित बच्चे अब बीच में पढ़ाई छो’ड़ दे रहे हैं। सूबे की स्कूली शिक्षा को बेहतर करने के प्रयासों के बीच बड़ी संख्या में यह ड्रॉपआउट चिंता’जनक है।
राज्य के सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में पिछले एक-डेढ़ दशक में बड़े सुधार हुए हैं। बड़ी संख्या में स्कूल भवन बने हैं। गुलाबी रंग का इनका आवरण दूर से ही शिक्षा भवन के खड़ा होकर मुस्कुराने की तस्दीक करते हैं। स्कूलों में लगातार घंटियां बज रही हैं। साढ़े तीन लाख से अधिक शिक्षक बहाल हुए हैं। इसी माह 42 हजार शिक्षकों को नियुक्ति पत्र दिया गया है।बावजूद इन प्रयासों के बच्चों के बीच में पढ़ाई छोड़ने की दर शिक्षाशास्त्रियों को चिं’तित करती है। सरकारी रिपोर्ट की ही मानें तो उच्च प्राथमिक स्तर यानी मध्य विद्यालय जाते-जाते 38.8 फीसदी बच्चे पढ़ाई छोड़ दे रहे हैं। ड्रॉपआ’उट वालों में बेटे 40.1 फीसदी जबकि बेटियां 37.3 फीसदी हैं। हाल ही में बजट सत्र के पहले दिन उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने जो आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया, उसकी रिपोर्ट भी इस पर मुहर लगाती है। रिपोर्ट विभाग द्वारा प्रस्तुत यू-डायस आंकड़ों के आधार पर तैयार हुई है।
मिली जानकारी के मुताबिक, पिछले आठ साल यानी 2012-13 और 2019-20 के दौरान प्राथमिक स्तर पर ड्रॉप’आउट में 9 जबकि उच्च प्राथमिक स्तर पर 7.9 फीसदी की गिरावट आयी है, लेकिन प्राथमिक स्तर पर भी यह 31.7 से गिरकर 22.7 पर आकर बरकरार है। वहीं माध्यमिक (9वीं-10वीं) स्तर पर या इसके बाद पढ़ाई छोड़ने वाली बेटियों का प्रतिशत (66.7) है’रत में डालनेवाला है। ड्रॉ’पआउट वाले 60.8 फीसदी लड़कों को मिलाकर इस स्तर पर कुल ड्रॉपआउट 63.5 फीसदी होना कई सवाल खड़े करता है।
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