हरि वर्मा
नई दिल्ली। राजनीति में ये ‘दाग‘अच्छे नहीं हैं। आजादी की 75 वीं वर्षगांठ से पहले अलग-अलग दो मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण पर नकेल की आस जगाई है। हमारी कमीज आपकी कमीज से सफेद का दावा करने वाले दलों की दागी राजनीति पर सुप्रीम कोर्ट के ये फैसले लगाम हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अब दागियों के दाग राजनीतिक दल या सरकारें खुद की लाउंड्री में नहीं धूल पाएंगी, संबंधित हाईकोर्ट की मंजूरी लेनी होगी। उधर, बिहार चुनाव से जुड़े अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 8 दलों को दोषी ठहराते हुए यह फैसला दिया है कि उम्मीदवार चुने जाने के 48 घंटे के भीतर आपराधिक उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि हर हाल में सार्वजनिक करनी होगी।
उम्मीद जगाते फैसले
बिहार चुनाव के अवमानना मामले में ताजा फैसला और राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से आस जगी है कि आगे से दागियों के दाग छिपाने और खुद की लाउंड्री में दाग धूलने की परंपरा थमेगी। हालांकि चिंता यह है कि दो साल के भीतर ही सांसदों-विधायकों पर दागी मामलों में 17 फीसदी का इजाफा भी हुआ है, वहीं 122 वर्तमान और पूर्व विधायक-सांसद ईडी की रडार पर हैं।
यूं तो सियासत में दाग और मनी लॉंड्रिंग ज्यादातर को पसंद हैं लेकिन गणतंत्र की धरती बिहार के चुनाव से जुड़े ये सुप्रीम फैसले उत्तर प्रदेश-पंजाब समेत अनेक राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ-साथ 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नजीर साबित हो सकते हैं। लिट्मस टेस्ट भी।
उम्मीद की जा सकती है कि सुप्रीम फैसले से राजनीति के सबसे बड़े वायरस (अपराध व लेनदेन) के खिलाफ चुनाव आयोग को बूस्टर डोज मिले। विधायिका कानून बनाने और माननीयों के आपराधिक मामलों के तेजी से निपटारे को लेकर गंभीर हो, दल भी दागदार दामन से बच कर जनता-जनार्दन में छवि चमकाने की पहल (दिखावटी ही सही) करें।
हाईकोर्ट की नकेल क्यों
आमतौर पर जब सरकारें बदलती हैं तो अपने-अपने दलों से जुड़े माननीयों पर से आपराधिक मामले वापस लेने का चलन है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल समेत कई राज्य बानगी हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगे में भड़काऊ बयानवीरों (संगीत सोम, सुरेश राणा, साध्वी प्राची आदि) पर से मामले वापस लिए।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विनीत शरण की तीन सदस्यीय पीठ ने न्याय मित्र विजय हंसारिया के सुझाव पर गौर करते हुए यह फैसला तत्काल लिया कि आगे से संबंधित हाईकोर्ट की अनुमति जरूरी होगी, तभी दागियों के मामले वापस लिए जा सकेंगे। ऐसे मामलों की सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों के बीच में तबादले भी नहीं होंगे।
यूपी में 76 और कर्नाटक में 61 राजनीतिक मुकदमों की वापसी के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट को यह फैसला तत्काल लेना पड़ा, हालांकि राजनीति के अपराधीकरण पर सुनवाई का सिलसिला अभी जारी है। अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।
बिहार बना नजीर
बिहार चुनाव के अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला राजनीतिक दलों के लिए आईना साबित हो सकता है। पिछले साल 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा के चुनाव में 470 दागी उम्मीदवार मैदान में थे। सभी राजनीतिक दल हमाम में नंगे थे। राजद, भाजपा, जदयू, कांग्रेस, भाकपा, माकपा भले दो गठबंधनों की छतरी तले एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में आमने-सामने थे लेकिन दागी उम्मीदवारों की जानकारी सार्वजनिक नहीं करने पर उनमें विविधता में एकता थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 दलों को अवमानना का दोषी ठहराया है। कांग्रेस-भाजपा को एक-एक लाख, एनसीपी-माकपा को 5 लाख का आर्थिक जुमाना लगाया है। चुनावी रणबांकुरे के लिए आर्थिक जुर्माना राशि कम भले है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को वेबसाइट के होम पेज पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार कैप्शन से अलग से दागियों को दर्शाने का आदेश दिया है।
चुनाव आयोग को भी कहा है कि वह मोबाइल एप विकसित करे और चुनाव के दौरान ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार करे। सोशल मीडिया और अखबारों में भी इसकी जानकारी देने की हिदायत पहले से है। यह फैसला जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने सुनाया है। जस्टिस नरीमन अगले हफ्ते सेवानिवृत होने जा रहे हैं।
उम्मीद करें कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए राजनीतिक दलों के लिए ये फैसले सुप्रीम कोर्ट का हथौड़ा साबित हों। उम्मीद करें कि आजादी के अमृत महोत्सव की बेला में लिए गए ये फैसले गणतंत्र के लिए अमृत साबित हों। उम्मीद करें कि कोरोना काल में राजनीति के अपराधीकरण वाले वायरस का समुचित इलाज हो क्योंकि गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी- राजनीति में अपराधीकरण जैसे नासूर की सर्जरी की जरूरत।
फैसले का पंच
1. दागियों के मामले हाईकोर्ट की अनुमति के बगैर वापस नहीं होंगे
2. उम्मीदवारों के आपराधिक मामले 48 घंटे के भीतर सार्वजनिक करने होंगे
3. बिहार चुनाव अवमानना के 8 दल दोषी, आर्थिक जुर्माना भी
4. दलों को आपराधिक उम्मीदवार होम पेज पर अलग से दर्शाना होगा
5. चुनाव आयोग मोबाइल एप तैयार कर प्रचार-प्रसार-जागरूकता पर जोर दे
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