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काल भैरव जयंती: भगवान शिव ने क्यों लिया था काल भैरव का अवतार? पढ़ें पौराणिक कथा

काल भैरव जयंती पर काल भैरव की विधि-विधान से पूजा- अर्चना की जाती है। इस साल 22 नवंबर, शुक्रवार को काल भैरव जयंती है। हर साल मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर काल भैरव जयंती का पावन पर्व मनाया जाता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने काल भैरव का अवतार लिया था।

शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद में काल भैरव की उत्पत्ति से जुड़ा उल्लेख मिलता है। एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से पूछा कि इस ब्रह्माण्ड का श्रेष्ठतम रचनाकर कौन है? इस सवाल के जवाब में ब्रह्माजी ने स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया। ब्रह्माजी का उत्तर सुनने के बाद भगवान विष्णु उनके शब्दों में समाहित अहंकार और अति आत्मविश्वास से क्रोधित हो गए और दोनों मिलकर चारों वेदों के पास अपने सवाल का उत्तर करने के लिए गए। सबसे पहले वे ऋग्वेद के पास पहुंचे। ऋग्वेद ने जब उनका जवाब सुना तो कहा “शिव ही सबसे श्रेष्ठ हैं, वो सर्वशक्तिमान हैं और सभी जीव-जंतु उन्हीं में समाहित हैं”। जब ये सवाल यजुर्वेद से पूछा गया तो उन्होंने उत्तर दिया “यज्ञों के द्वारा हम जिसे पूजते हैं, वही सबसे श्रेष्ठ हैऔर वो शिव के अलावा और कोई नहीं हो सकता”।

ब्रह्माजी का अहंकार शांत नहीं हुआ और वे उनके जवाबों पर जोर-जोर से हंसने लगे। इतने में ही वहां दिव्य प्रकाश के रूप में महादेव आ पहुंचे। शिव को देखकर ब्रह्मा का पांचवां सिर क्रोध की अग्नि में जलने लगा। उसी वक्त भगवान शिव ने अपने अवतार की रचना की और उसे ‘काल’ नाम देकर कहा कि ये काल यानि मृत्यु का राजा है। वह काल या मृत्यु का राजा कोई और नहीं शिव का अवतार भैरव था। ब्रह्मा के क्रोध से जलते सिर को भैरव ने उनके धड़ से अलग कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भैरव से सभी तीर्थस्थानों पर जाने के लिए कहा ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल सके।भैरव के हाथ से ब्रह्मा का सिर गिर गया। काशी में जिस स्थान पर ब्रह्मा का कटा सिर गिरा था उसे कपाल मोचन तीर्थ कहा जाता है। उस दिन से लेकर अब तक काल भैरव स्थायी रूप से काशी में ही निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है जो भी व्यक्ति काशी यात्रा के लिए जाता है या वहां रहता है उसे कपाल मोचन तीर्थ अवश्य जाना चाहिए।

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