भगवान शिव के स्वरूप माने जाते हैं काल भैरव। काल भैरव देव की पूजा निशा काल में होती है। कालाष्टमी व्रत के दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा की जाएगी। इसलिए अष्टमी में प्रदोष व्यापनी तिथि का विशेष महत्व होता है। यह दिन तंत्र साधना के लिए उपयुक्त माना गया है। काल भैरव को दंड देने वाला देवता भी कहा जाता है। इसलिए इनका शस्त्र दंड है। यह पूजा तंत्र-मंत्र दोनों तरह से प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि बाबा काल भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।
पंचांग के अनुसार, 22 नवंबर के दिन शाम 06:07 बजे से अष्टमी तिथि की शुरुआत होगी, जो 23 नवंबर के दिन शाम 07:56 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, 23 नवंबर के दिन काल भैरव जयंती मनाई जाएगी।
मुहूर्त
- शुभ – उत्तम 08:10 से 09:29
- चर – सामान्य 12:08 से 13:27
- लाभ – उन्नति 13:27 से 14:46 वार वेला
- अमृत – सर्वोत्तम 14:46 से 16:05
- लाभ – उन्नति 17:25 से 19:06
- शुभ – उत्तम 20:46 से 22:27
- अमृत – सर्वोत्तम 22:27 से 00:08, नवम्बर 24
- चर – सामान्य 00:08 से 01:49, नवम्बर 24
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