केंद्र सरकार ने बिहार में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उन गांव व बसावटों को विकसित करने की योजना बनाई है जहां हस्तशिल्पियों की बस्ती है।
पीएम विरासत संवर्द्धन योजना के तहत इन बसावटों को ‘विश्वकर्मा गांव’ के रूप में विकसित किया जाएगा इससे पर्यटक यहां आकर स्थानीय शिल्प देख और इसके बारे में विस्तार से जान सकेंगे। जिले में इस तरह के कम से कम तीन स्थल हैं जिन्हें ‘विश्वकर्मा गांव’ के रूप में पहचान मिल सकती है। इसमें बोचहां, सकरा व शहर का इस्लामपुर शामिल है।
चयन के लिए ये हैं शर्त
केंद्र के निर्देश पर पर्यटन विभाग ने मुजफ्फरपुर के भी उन स्थलों की सूची मांगी है जिनका विकास पर्यटन स्थल के रूप में किया जा सके। इसके लिए शर्त रखी गई है कि ऐसी बसावट रेलवे स्टेशन या जिला मुख्यालय से दो सौ किलोमीटर के अंदर होनी चाहिए। इन बसावटों तक जाने के लिए सड़क होनी चाहिए। बाकी सुविधाएं पर्यटन विभाग बहाल कराएगा जिसमें पेयजल व शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा से लेकर अन्य लग्जरी सुविधाएं शामिल होंगी।
होगी फंडिंग
जिन शिल्पों से संबंधित बसावट या इलाकों की पहचान करनी है, उसमें हस्तशिल्प, चित्रकला, पाक कला, हैंडलूम या कालीन निर्माण शामिल है। यदि ये बसावट अल्पसंख्यकों से संबंधित होंगे तो इसकी जानकारी अल्पसंख्यक कल्यण मंत्रालय को भी देनी है ताकि उनके विकास के लिए अलग से फंडिंग कराई जा सके। जिले में ऐसे तीन बसावट पहले से चिन्हित हैं, जिनका चुनाव इस योजना के तहत हो सकता है। हालांकि जिला प्रशासन अभी और बसावटों की पहचान करायेगा।
सकरा, बोचहां, इस्लामपुर हैं उपयुक्त
पर्यटन विभाग के निर्देश के बाद जिले के उन स्थलों की चर्चा शुरू हो गई है जहां इस तरह की बसावट है। इनमें शहर के इस्लामपुर व सकरा के बघनगरी में लहठी, बोचहां के सर्फुद्दीनपुर में सुजनी कला, सुस्ता में टिकुली कला व बांसुरी कला शामिल है। यहां ऐसी बसावट है जहां 20 से सौ परिवार तक एक ही हस्तशिल्प के व्यवसाय से जुड़े हैं।
डीडीसी आशुतोष द्विवेदी ने बताया कि पर्यटन विभाग के निर्देश पर ऐसे बसावटों की पहचान की जाएगी और इसकी सूची विभाग को भेजी जाएगी। इनके विकास की योजना तैयार की जा सकेगी।
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