बाल विकास पदाधिकारियों को आईएलए के मॉड्यूल पर प्रशिक्षण दिया गया, जिसमें निम्न बातों पर ध्यान दिया गया है
– गृह भ्रमण पर दिया गया जोर
– कंगारु मदर केयर की विधियों को बताया गया
कुपोषण, बीमार बच्चों तथा कमजोर बच्चों की पहचान के लिए जिला प्रोग्राम कार्यालय में जिला संसाधन समूह तथा जिले के सभी बाल विकास पदाधिकारियों को आईएलए के मॉड्यूल पर प्रशिक्षण दिया गया। जिसकी अध्यक्षता डीपीओ ललिता कुमारी ने की। प्रशिक्षण के अंतर्गत उन्हें आईएलए के मॉड्यूल 16,17 एवं 18 के बारे में बताया गया। जिससे उनकी क्षमता का विकास हो और पोषक क्षेत्र में कुपोषण जैसी बीमारी से निजात मिल सके।
बच्चों के पोषण पर मिला प्रशिक्षण –
डीपीओ ललिता कुमारी ने बताया कि आईएलए के मॉड्यूल 16 में बीमारी के दौरान शिशु का आहार कैसा हो, ऊपरी आहार में क्या हो, बीमारी के समय भी स्तनपान जैसी बातों को प्रशिक्षण में बताया गया है। वहीं मॉड्यूल 17 में कमजोर नवजात की पहचान , प्रसव के ठीक बाद नवजात की देखभाल कैसे की जाए, गर्भावस्था के बाद हम ऐसा क्या करें कि महिला अपनी दूसरा गर्भ टाल सके, जैसी बातें व मॉड्यूल 18 में कुपोषण तथा उससे होने वाली मौत को कैसे टाला जा सके। इस मॉड्यूल से एईएस में भी काफी फायदा होगा।
गृह भ्रमण पर जोर –
डीपीओ ललिता कुमारी ने कहा कि यह प्रशिक्षण तभी सफल हो पाएगा जब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गृह भ्रमण करेंगी । बाल विकास पदाधिकारी यह प्रशिक्षण अपने पोषण क्षेत्र की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को प्रदान करेंगे ताकि गृह भ्रमण के दौरान कुपोषण, बीमार बच्चे उनका खानपान तथा कमजोर नवजात तथा परिवार नियोजन कार्यक्रम को बढ़ावा मिल सके।
कंगारु मदर केयर पर जोर –
प्रशिक्षण के दौरान जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ एके पांडेय ने कहा कि कमजोर नवजात बच्चों के लिए कंगारु मदर केयर एक ऐसी थेरेपी है जिससे बच्चा न सिर्फ कुपोषण से निकलता है बल्कि उसका उचित विकास भी होता है। इसमें करना सिर्फ इतना होता है कि मां द्वारा अपने बच्चे को अपने सीने से चिपकाकर रखा जाता है। जिससे बच्चे को गर्माहट मिलती है। वहीं छह माह के बच्चे को ऊपरी आहार देना बहुत जरूरी है। अगर कोई नवजात बीमार हो तो भी उसे स्तनपान कराना न भूलें।
कोरोना काल में इन उचित व्यवहारों का करें पालन,-
– एल्कोहल आधारित सैनिटाइजर का प्रयोग करें।
– सार्वजनिक जगहों पर हमेशा फेस कवर या मास्क पहनें।
– अपने हाथ को साबुन व पानी से लगातार धोएं।
– आंख, नाक और मुंह को छूने से बचें।
– छींकते या खांसते वक्त मुंह को रूमाल से ढकें।
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