नवमी के दिन मां दुर्गा के नौवें रूप सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान है। यह देवी अपने सभी भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूरा करने वाली हैं। पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र के अनुसार आश्विन शुक्ल नवमी इस बार अष्टमी तिथि के साथ 24 अक्तूबर को ही मनाई जाएगी, क्योंकि 23 अक्तूबर को सप्तमीवेध युक्त अष्टमी है। धर्मशास्त्र की दृष्टि से देखें तो इस बार की अष्टमी युक्त नवमी विशेष शुभकारी भी है। कहते हैं भगवान शिव ने भी अपनी समस्त सिद्धियां मां सिद्धिदात्री की कृपा से प्राप्त की थीं।
इन्हीं की अनुकंपा से वह अर्द्धनारीश्वर कह’लाए। मधु-कैटभ का वध करने के लिए देवी ने महा’माया फैलाई, जिससे देवी के बहुत से रूप हो गए। दानवों को भ्रम हु’आ कि यह कौन-सी देवी हैं, जो माया का प्रसार कर रही हैं, पूरा लोक जिनके मोह’पाश में फंसा जा रहा है। दान’वों के पूछने पर देवी कहती हैं कि यह मेरी ही शक्तियां हैं, इन्हें मु’झमें ही समा’हित होते देखो। यही तांत्रिकों को तंत्र सि’द्धि देने वाली मां कम’ला हैं।
अष्टमी और नव’मी के दिन कन्या पू’जन भी कि’या जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां इन कन्या’ओं के मा’ध्यम से ही अ’पना पूजन स्वी’कार करती हैं। इन कन्या:ओं के साथ दो बटु’क कुमारों- गणेश और भैर’व को भी भोजन कराना चाहिए। इस’के बिना पूजा अधूरी मा’नी जाती है। कन्या’ओं को हलवा, छोले,पूरी आदि के साथ कोई फल अव’श्य दें। साथ ही अपनी सा’मर्थ्य के अनुसार दक्षिणा भी कन्या’ओं को प्रसन्नता’पूर्वक देनी चाहिए। जि’तनी कम उम्र की कन्या होंगी, उतना ही अच्छा फ’ल प्राप्त होगा। 10 वर्ष से अधि’क की कन्या नहीं होनी चाहिए। कन्या’ओं को घर से विदा करते हुए उनसे आशी’र्वाद भी अव’श्य लेना चाहिए।
मंत्र: ऊंसिद्धिदात्रयै नम:।
पूजा विधि: सुबह स्नाना’दि करके गणे’शजी की पूजा करें, फिर मां को लाल फूल, पान आदि भेंट करें। यथा’शक्ति शृंगार की सा’म्रगी भेंट करके मां की पू’जा करें और आर’ती करें। आ’ज अपनी कुल’देवी का पूजन भी करें। मां का नाम ले’कर हवन कम-से-कम नौ बार या फिर 108 बार अवश्य करें। अखंड दीप आज की रात भी जलता रहना चाहिए। कलश का जल कन्या पूजन के बाद पूरे घर में छि’ड़कें।
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