बिहार : जिंदगी का एक ही लक्ष्य है मिथिला पेंटिंग। इसी ने देश-विदेश में पहचान दिलाई। ना पूजा की और ना ही पढ़ाई। मिथिला पेटिंग के बदौलत पद्मश्री पायी। बड़ निक है मिथिला पेंटिंग। बच्चों की रूचि भी है। मिथिलांचल ही नहीं पूरे बिहार में मिथिला पेंटिंग के साथ चित्रकला की पढ़ाई हर विद्यालय में जरूरी है। पद्मश्री से सम्मानित दुलारी देवी ने खुद के साथ मिथिला कलाकृति के उत्थान की गाथा साझा की। मधुबनी जिले के राजनगर प्रखंड के रांटी गांव, मल्लाह टोली की रहने वाली दुलारी ने हर सवाल का मैथिली भाषा में बहुत ही सहज तरीके से जवाब दिया। फिलहाल गया में भगवान बुद्ध पर पेंटिंग बनाने में जुटी हैं।
कहती हैं कि सिर्फ रामायण यानी राम-सीता के अलावा अल-अलग थीमों पर बहुत चित्रकारी की हूं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, मिथिला खान-पान, कमला पूजा आदि थीम पर भी पेटिंग बनायी है। विषय की जानकारी हो तो कोई भी पेंटिंग बना दूंगी। कहती हैं कि अयोध्या या वृंदावन नहीं गई, लेकिन वहां की भी पेंटिंग बनायी। आज तक पूजा नहीं की। मंदिर धोई यानी सेवा की लेकिन पूजा नहीं। प्रभु श्री राम की तरह घर छोड़ा। बहुत कष्ट की तब सफलता मिली है। खुद को संवारने के साथ ही विदेशों में मिथिला कलाकृतियों को पहुंचाया। कहती हैं कि कमला पूजन की पेंटिंग तीन लाख बिकी थी। उसी पैसे से घर बनाया।
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