सवालः तो क्या ट्विटर, व्हाट्सएप, फेसबुक को बेलगाम छोड़ देना चाहिए, सोशल मीडिया प्लेटफार्म हित साधने वालों का जरिया बना रहे
तो क्या सरकार विरोध व सरकार की भक्ति के बीच निष्पक्षता व सामाजिक दायित्व को ध्रुवीकरण की भेंट चढ़ा देनी चाहिए
हरि वर्मा
ट्विटर की चिड़िया आकाश में उन्मुक्त उड़ान भर रही है। यह कबूतर पलक झपकते दुनिया में सबसे तेज एक-दूसरे तक संदेश पहुंचा रहा है। संदेश सार्थक है, निरर्थक है या समाज के लिए घातक, इससे उसका कोई लेना-देना नहीं। सामाजिक ताना-बाना बिगड़ता है, तो बिगड़े, उसे मतलब नहीं। उसकी उन्मुक्त उड़ान समाज में बार-बार वैमनस्य की वजह बनती रही है।अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। फेक न्यूज व फेक वीडियो से समय-समय पर माहौल बिगाड़ने की साजिश जारी है। सरकार विरोध और सरकार भक्ति के बीच निष्पक्षता और सामाजिक दायित्व ध्रुवीकरण की भेंट चढ़ती जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए प्रेस परिषद और ब्रॉडकॉस्टर जैसी लक्ष्मण रेखा है, तो आखिर सोशल मीडिया बेलगाम क्यों ? उसे सरकार के दिशानिर्देश से परहेज क्यों ? तो क्या सरकार का दिशानिर्देश सचमुच अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है या यह नकेल उसे जवाबदेह बनाने की पहल है ?
हित साधने वालों का जरिया कब तक
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के लोनी में बुजुर्ग से हाल की घटना में ट्विटर की गैरजिम्मेदार भूमिका की चर्चा है। सरकार के नये दिशानिर्देश के बावजूद ट्विटर ने इस घटना पर न संज्ञान लिया, न अपनी ओर से कोई कार्रवाई की। मानो सामाजिक सद्भाव बिगड़ता है तो बिगड़े, यह सरकार और कानून की बला है, ट्विटर की सिरदर्दी नहीं। यह घटना तब हुई जब साल भर के भीतर उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं। जाहिर है कि चुनाव तक ऐसी साजिशें बार-बार रची जाएंगी। पुलिस की मानें तो लोनी वाले वीडियो से अलीगढ़, बरेली समेत यूपी के कई हिस्सों में माहौल बिगाड़ने की साजिश थी। उत्तर प्रदेश पुलिस की सतर्कता ने फिजां बिगड़ने से बचाया। अब ट्विटर का कानूनी संरक्षण खत्म कर दिया गया है। ट्विटर समेत आरोपियों पर मामला दर्ज कर पड़ताल की जा रही है। ट्विटर को नोटिस थमाया गया है। उसके अधिकारी को पूछताछ के लिए बुलाया गया है। उधर, संसदीय समिति ने शुक्रवार को ट्विटर के अधिकारियों शगुफ्ता कामरान और आयुषी कपूर से कई सवाल किए। ऐसे में सवाल उठता कि आखिर कब तक सोशल मीडिया प्लेटफार्म हित साधनों वालों का जरिया बना रहे।
कबूतर जा..जा.. बनाम कोयल की कू
सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भारत में बड़ी संख्या में यूजर्स हैं। व्हाट्सएप के 53 करोड़, फेसबुक के 40 करोड़ और ट्विटर के एक करोड़ यूजर्स हैं। अभी व्हाट्सएप के नये नियमों से निजता की उलझन बरकरार है। ट्विटर के गैरजिम्मेदार रवैया का नतीजा है कि नाइजीरिया ने हाल में कू को अपना लिया। चीन खफा है। आपदा की इस घड़ी में भारत ने ट्विटर के मुकाबले आत्मनिर्भर कू का अवसर पैदा किया। अब तक अपने यहां कू के 30 लाख लोग यूजर्स हैं। सरकार के कई मंत्री भी कू से जुड़ गए हैं, लेकिन हैरानी है कि नाइजीरिया ने ट्विटर की जगह कू को अपना लिया, पर अपने यहां ट्विटर के चहेते आज भी कू के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा हैं। आज भी ट्वीट चलन में है। यह भी एक वजह है कि ट्विटर, व्हाट्सएप, फेसबुक जैसी कंपनियां अपने उपभोक्ताओं (यूजर्स) के साथ-साथ सरकार पर मनमानी थोप रही हैं। सरकार मानती है कि उसका ट्विटर पर प्रतिबंध का कोई इरादा नहीं लेकिन चेतावनी है कि भारत के संविधान और कायदे-कानून उसे मानने होंगे। ट्विटर की दलील है कि भारत सरकार के नये दिशानिर्देश के पालन से उसे परहेज नहीं। उसने शिकायत अधिकारी नियुक्त कर लिया है। लेकिन जो दुनिया भर में पलक झपकते संदेश पहुंचाता हो, उसका ही शिकायत अधिकारी नियुक्त करने वाला संदेश सरकार तक तय समय सीमा के भीतर न पहुंचे, तो इसे क्या कहेंगे। सरकार का दावा है कि ट्विटर ने अब तक शिकायत अधिकारी की नियुक्ति का ब्योरा नहीं दिया है।
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