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जय महकाल / आज भी उज्‍जैन में निरंतर जारी है 111 वर्ष पुरानी परंपरा, महाकाल को सुनाई जाती है शिव कथा

उच्जैन हरि अनंत हरि कथा अनंता.. कहहिं सुनहीं बहुबिधि सब संता..। हरि अनंत हैं और उनकी कथा भी। संत उनकी कथाओं को बहुत प्रकार से कहते और सुनते हैं। यह बात राजाधिराज बाबा महाकाल के प्रांगण में चरितार्थ हो रही है। बाबा के आंगन में इन दिनों शिवनवरात्रि का उल्लास छाया हुआ है। तड़के भस्मारती से लेकर रात्रि तक शिव स्तुतियां और भजन गूंज रहे हैं। मगर संध्या के समय श्रीरामचरितमानस की चौपाइयां भी सुनाई दे रही हैं। राम कथा के प्रसंग संगीतबद्ध होकर श्रोताओं में आध्यात्मिकता का संचार कर रहे हैं। शिव को राम प्रिय हैं और राम को शिव।

इसलिए 13 फरवरी से प्रारंभ शिवनवरात्रि के इन नौ दिनों में अवंतिकानाथ को नारदीय संकीर्तन से हरि कथा सुनाने की परंपरा है। ज्ञात इतिहास में यहां भगवान महाकाल को यह कथा सुनाने की परंपरा 111 साल पुरानी है। इंदौर के कानड़कर परिवार के सदस्य यह रीत निभाते आए हैं। इस शिवनवरात्रि पर मंदिर प्रांगण के एक चबूतरे पर खड़े होकर रमेश श्रीराम कानड़कर भगवान को कथा श्रवण करा रहे हैं। रमेश अपने परिवार की नौवीं पीढ़ी के सदस्य हैं, जो महाकाल मंदिर में कथा सुना रहे हैं।

 

प्रतिदिन शाम 4 से 6 बजे तक कथा का आयोजन होता है। 80 वर्षीय कानड़करजी ने बताया भगवान नारदजी जिस प्रकार खड़े होकर करतल ध्वनि के साथ हरि नाम संकीर्तन करते रहते हैं, उसी प्रकार खड़े होकर संकीर्तन पद्धति से हरि कथा का वाचन किया जाता है। नारदीय संकीर्तन कथा के 11 खंड हैं। भगवान महाकाल की प्रेरणा से कथा खंडों में से कुछ का वाचन किया जाता है। भक्तों को भी कथा श्रवण में आनंद आता है। कानड़कर शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं।

 

परिवार की परंपरा को निभाने के लिए प्रतिवर्ष अपने राजा अवंतिकानाथ की सेवा में उपस्थित होते हैं। इससे उन्हें आत्मीय सुख भी मिलता है।ज्ञात इतिहास में यह परंपरा 111 साल पुरानी है। किंतु मान्यता है कि श्रुत परंपरा में यह त्रेता युग से चली आ रही है। पुजारी प्रदीप गुरु के अनुसार दंत कथाओं में उल्लेख मिलता है कि हनुमानजी जब अवंतिकापुरी में आए थे तब शिवनवरात्रि के दौरान उन्होंने भी संकीर्तन कथा का श्रवण किया था।

 

परिवार की परंपरा को निभाने के लिए प्रतिवर्ष अपने राजा अवंतिकानाथ की सेवा में उपस्थित होते हैं। इससे उन्हें आत्मीय सुख भी मिलता है।ज्ञात इतिहास में यह परंपरा 111 साल पुरानी है। किंतु मान्यता है कि श्रुत परंपरा में यह त्रेता युग से चली आ रही है। पुजारी प्रदीप गुरु के अनुसार दंत कथाओं में उल्लेख मिलता है कि हनुमानजी जब अवंतिकापुरी में आए थे तब शिवनवरात्रि के दौरान उन्होंने भी संकीर्तन कथा का श्रवण किया था।

 

प्रसिद्ध च्योतिविर्दं पं. आनंद शंकर व्यास ने बताया शिवनवरात्रि में भगवान महाकाल को नारदीय संकीर्तन से हरि कथा सुनाने की परंपरा स्टेट के जमाने सेचली आ रही है। कानड़कर परिवार के सदस्य इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं। दक्षिण भारत में नारदीय संकीर्तन से कथा करने की परंपरा है। भगवान महाकाल को यह कथा अतिप्रिय है।

शिवनवरात्रि का उल्लास

महाकाल मंदिर में 13 फरवरी से शिवनवरात्रि के रूप में शिव विवाह का उल्लास छाया है। प्रतिदिन सुबह भगवान का विशेष अभिषेक पूजन कर, संध्या आरती में विभिन्न रूपों में श्रृंगार किया जा रहा है। 21 फरवरी को महाशिवरात्रि पर त्रिकाल पूजा होगी। 22 फरवरी को तड़के 4 बजे भगवान का सप्तधान रूप में श्रृंगार होगा और सात प्रकार के धान अर्पित किए जाएंगे। इसके बाद भगवान के शीश पर सवामन फूल व फलों से बना सेहरा सजाएगे। सुबह 10 बजे तक भक्तों को सेहरे के दर्शन होंगे। सुबह 11 बजे पुजारी भगवान के सिर से सेहरा उतारेंगे। दोपहर 12 बजे साल में एक बार दिन में होने वाली भस्मारती होगी। इसके साथ ही नौ दिवसीय शिवनवरात्रि उत्सव का समापन होगा।

(इस खबर को मुजफ्फरपुर न्यूज़ टीम ने संपादित नहीं किया है. यह जागरण फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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