खिसकते जना’धार ने इस बार वाम दलों को एकजु’ट कर दिया है। तीनों वाम दल के अलग-अलग किसी अन्य दल के साथ ताल’मेल का उदा’हरण तो पेश किये जा सकते हैं, लेकिन पहली बार तीनों वाम’पंथी पार्टियां बिहार विधानसभा के इस चुनाव में किसी एक गठबंधन में शामिल हुई हैं। राजद और कांग्रेस ने भी अपनी पुरानी जमीन तलाश’ने में ही इनका साथ लिया है।
बिहार के चुना’व में 70 के दशक में उत्’कर्ष पर पहुंचने के बाद विधा’नसभा में वाम दलों की सीटें कम होती गईं। वोट प्रति’शत भी गिरने लगा। उसी काल’खंड में सीपीआई के सुनील मुखर्जी बिहार विधान’सभा में प्रतिपक्ष के नेता बने थे। तब 1969 और 72 के चुनाव में सीपीआई को 25 और 35 सीटें मिली थीं। सीपीएम को भी सबसे अधिक छह सीटें मिली थीं। उनका वोट प्रति’शत भी दो अंकों में था।
वर्ष 1990 में जब इंडि’यन पिपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) चुनाव में उतरा तो वाम दलों का बड़ा जना’धार उसकी ओर खिसक गया। वर्ष 1995 के चुनाव में आईपीएफ माले के रूप में चुनाव में उतरा। वह लालू प्रसाद के शासन का दौर था। उन्होंने भी गरी’बों के नाम पर राजनीति शुरू की और वामदलों के वोटरों को अपनी ओ खींच’ने में सफल हो गये। बाद में तो लालू प्रसाद ने वाम दलों को तोड़ भी लिया। माले के तो तीन विधा’यक भी राजद में चले गये, दूसरी वाम पार्टि’यों के कई प्रमुख नेता ने भी राजद का दामन थाम लिया। जनाधा’र खिस’कने के बाद से ही तीनों वाम दलों की ए’कता का लगातार प्रया’स होता रहा जो इस बार वर्ष 2020 के चुना’व में जमीन पर उतर सका है।
वर्ष 1990 के बाद के सभी चुनावों पर नजर डाले तो सबसे अधिक 1990 के चुना’व में 34 सीटें वाम दलों को मिली थीं। सीपीआई ने उस समय 6.59 प्रतिशत वोट पाकर 23 और सीपीएम 1.33 प्रति’शत वोट के साथ छह सीटें जीतीं। माले को 0.17 प्रतिश’त वोट मिले और एक भी सीट नहीं मिली। वर्ष 1995 के चुनाव में इनका वोट भी बढ़ा और सीटें भी। सीपीआई को 26 और सीपीएम को छह सीटें मिलीं। वर्ष 2000 के चुनाव में सीपीआई खिसक’कर पांच और सीपीएम दो सीट पर सिमट गई। लेकिन, तब माले ने छह सीटों पर अपना उम्मीद’वार जीता लिया। वर्ष 2005 के अक्टूबर चु’नाव में सीपीआई तीन और सीपीएम को मात्र एक सीट पर जीत मिली। लेकिन माले के फिर पांच विधाय’क सदन में आ गये। वर्ष 2010 के चुना’व में सीपीआई को मात्र एक सीट और सीपीएम जीरो पर आउट हो गई। लेकिन माले फिर इससे अधिक सीट ले गया। पिछले चु’नाव में तो सीपीआई और सीपीएम दोनों जीरो पर आउट हो गये लेकिन माले ने अपने तीन विधाय’क सदन में भेज दिया।
आं’कडों से पता चलता है कि माले के चुनावी राज’नीति में आने के बाद दूसरे वाम दलों का आधार क्षीण होता गया। इसी आधार को फिर से पाने की कवायद इस चुना’व में हो रहा है। लेकिन महाग’ठबंधन ने भी इसको भांप लिया है। इसलिए माले महाग:ठबंधन में सबसे अधिक 19 सीट लेने में काम’याब हो गया है।
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