नीतीश कुमार द्वारा बीजेपी का साथ छोड़कर आरजेडी से हाथ मिलाने के बाद से पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी महागठबंधन में आग लगाने वाली बातें कर रहे हैं। वे पिछले कुछ दिनों से आरजेडी और जेडीयू को लड़ाने वाले बयान दे रहे हैं। वे चाहते हैं कि उनकी छोटे-छोटे मसलों को बड़ा करके लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच मतभेज डाल दें। क्योंकि इसका फायदा बीजेपी को होगा।
बीजेपी नेता सुशील मोदी के पिछले कुछ बयानों पर नजर डालें, तो वे महागठबंधन सरकार के खिलाफ आक्रामक दिखे। सबसे ताजा उदाहरण, जैसे ही आईआरसीटीसी घोटाले में मंगलवार को कोर्ट का फैसला आया, सुशील मोदी ने तुरंत ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि सीबीआई को धम’की देने वाले तेजस्वी यादव को कोर्ट से कड़ी फटकार मिली और उन्हें माफी मांगनी पड़ी। घोटाले से जुड़े मामले में चार्जशीटेड और बेल वाले आदमी को नीतीश कुमार ने डिप्टी सीएम क्यों बना रखा है।
इससे पहले उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चुनौती देते हुए कहा कि उनमें हिम्मत है तो वे पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह को आरजेडी से बाहर करवाएं। सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले सुधाकर सिंह को नीतीश ने मंत्री पद से तो हटा दिया लेकिन उन्हें आरजेडी से बाहर नहीं करवा सकते हैं। पिछले महीने सुशील मोदी ने आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को फौरन सीएम की कुर्सी पर बैठाने की ट्रिक भी बता दी। उन्होंने लालू से कहा कि वे नीतीश कुमार के भरोसे न बैठे रहें, बल्कि जेडीयू के 5 विधायकों को तोड़कर तुरंत तेजस्वी को सीएम बना लें।
आरजेडी-जेडीयू में झगड़ा करवाने में जुटे सुशील मोदी?
बीजेपी नेता सुशील मोदी के इन बयानों से साफ जाहिर होता है कि वे आरजेडी और जेडीयू के बीच फूट डालने का काम कर रहे हैं। वे अक्सर नीतीश कुमार को रबर स्टांप मुख्यमंत्री बताते हैं और कहते हैं कि महागठबंधन सरकार में नीतीश को मजबूरन लालू यादव की हर बात माननी पड़ रही है। इसलिए आरजेडी के दागी चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया।
बीजेपी को क्या फायदा?
ऐसे में सवाल उठता है कि सुशील मोदी के महागठबंधन में फूट डालने से बीजेपी को क्या फायदा होगा? आपको बता दें कि सुशील भी जानते हैं कि आरजेडी और जेडीयू मिलकर बिहार में एक मजबूत गठबंधन है। 2015 में जब दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ी थीं, तब महागठबंधन की बड़ी जीत हुई थी। बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद नीतीश कुमार की पार्टी वापस बीजेपी के साथ लौटी तो 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को बिहार में एक सीट छोड़कर सभी पर जीत मिली थी।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक सुशील मोदी का मानना है कि महागठबंधन में शामिल दोनों बड़ी पार्टियों में छोटे-छोटे मसलों पर मतभेद पैदा किया जाए। ताकि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले दोनों पार्टियां फिर से अलग हो जाएं। इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा। मौजूदा हालात में बीजेपी को डर है कि आगामी चुनाव में महागठबंधन को हराना थोड़ा मुश्किल है।
क्या अब अटूट है लालू-नीतीश का गठबंधन?
2022 आधा गुजरने के बाद जैसे ही बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ, राजनीतिक गलियारों में नीतीश कुमार के पाला बदलने पर खूब चर्चा हुई। बीजेपी ने कहा कि नीतीश कुमार पलटने में माहिर हैं और वे फिर से आरजेडी का दामन छोड़कर उन्हें धोखा दे देंगे। सुशील मोदी भी कह चुके हैं कि लालू ने नीतीश पर फिर से भरोसा कर गलती की है।
हालांकि आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव और सीएम नीतीश कुमार, दोनों की तरफ से कहा जा रहा है कि अब उनकी पार्टियां कहीं नहीं जाएगी। लालू-नीतीश का गठबंधन अब अटूट है। वे मिलकर बिहार और देश के लिए काम करेंगे। नीतीश कुमार भी कई बार कह चुके हैं कि अब वे मरते दम तक बीजेपी से हाथ नहीं मिलाने वाले हैं।
तेजस्वी को सीएम बनने की हड़बड़ी नहीं है
महागठबंधन सही चले और आरजेडी और जेडीयू में कोई खटपट न हो, इसके लिए खुद लालू यादव ने तेजस्वी को अधिकृत किया है। लालू ने आरजेडी नेताओं को नसीहत दी है कि वे कोई भी ऐसा बयान न दें, जिससे महागठबंधन को कमजोर करे।
पिछले दिनों आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने तेजस्वी यादव के 2023 में सीएम बनने का दावा कर दिया। इसके बाद खुद तेजस्वी आगे आए और उन्होंने कहा कि वे नीतीश कुमार के नेतृत्व में काम कर रहे हैं और उन्हें सीएम बनने की कोई हड़बड़ी नहीं है। हालांकि जेडीयू और आरजेडी नेताओं के बयानों से यह तय है कि आने वाले दिनों में नीतीश कुमार महागठबंधन में रहते हुए केंद्र की राजनीति करेंगे और बिहार की कमान तेजस्वी यादव संभालेंगे।
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