दिल्ली : बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य खनन विभाग के माध्यम से बुधवार को बालू निकालने की गतिविधियां चलाने की अनुमति दे दी है। इससे सूबे में बालू की कीमतों पर लगाम लगने के कयास लगाये जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बालू खनन पर पूरी तरह से बैन लगाने से सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान हो रहा है। अदालत ने कहा कि बालू खनन के मुद्दे से निपटते समय पर्यावरण के सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ विकास के संतुलित तरीकों को लागू करना जरूरी है।
जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि बिहार के सभी जिलों में खनन के लिए जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने की कवायद नए सिरे से की जाएगी। बेंच ने कहा, ‘इस बात की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जब वैध खनन पर रोक है, तब अवैध खनन तेजी से बढ़ रहा है।
इस कारण रेत माफियाओं के बीच संघर्ष, अपराधीकरण और कई बार लोगों की जान जाने जैसे मामले सामने आते रहते हैं।’ कोर्ट ने यह भी कहा कि इस बात से मना नहीं किया जा सकता कि सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण और सरकारी व निजी निर्माण गतिविधियों के लिए बालू जरूरी है। पीठ ने कहा कि वैध खनन पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। अवैध खनन को बढ़ावा देने से राजकोष को बड़ा नुकसान होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के खिलाफ बिहार सरकार की अपील पर यह आदेश दिया है। एनजीटी ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि बांका में नए सिरे से जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने की कवायद की जाए।
एनजीटी के एक आदेश के खिलाफ बिहार सरकार की अपील पर ये आदेश आया है। एनजीटी ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि बांका के लिए नए सिरे से जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने की कवायद की जाए। एनजीटी ने 14 अक्टूबर, 2020 के आदेश में यह भी कहा था कि राष्ट्रीय शिक्षा मान्यता बोर्ड और भारत के प्रशिक्षण/गुणवत्ता नियंत्रण परिषद की ओर से मान्यता प्राप्त परामर्शदाताओं के माध्यम से सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए।
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