छठ का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से शुरू होकर पंचमी को खरना अथवा लोहण्डा, षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और सप्तमी को उगते सूर्य को जल अर्पित कर व्रत संपन्न किया जाता है। चार दिन चलने वाला इस पर्व में सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है।
5 नवंबर से छठ नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाएगा। जबकि 6 नवंबर को लोहण्डा अर्थात नवहण्डा का विधान पूर्ण किया जाएगा। अस्ताचलगामी सूर्य को 7 नवंबर की शाम पहला अर्घ्य दिया जाएगा। जबकि उदितमान सूर्य को 8 नवंबर की सुबह अर्घ्यदान होगा। इसके बाद विधि-विधान पूर्वक पूजन का समापन होगा और व्रती पारण करेंगी।
संध्या अर्घ्य:छठ पूजा पर सबसे महत्वपूर्ण दिन तीसरा होता है। इस दिन संध्या अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रती घाट पर आकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस साल छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 7 नवंबर को दिया जाएगा। इस दिन टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि अर्घ्य के रूप में सजाया जाता है। इसके बाद नदी या तालाब में पानी में रहकर अर्घ्य देने का अनुष्ठान पूर्ण करते हैं।
नहाय-खाय:छठमहापर्व चार दिन तक चलता है, पहला दिन नहाय-खाय होता है। नहाय-खाय 5 नवंबर को है। नहाय-खाय परम्परा में व्रती नदी में स्नान के बाद शाकाहारी भोजन ग्रहण करती हैं।
खरना तिथि:खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। इस साल खरना 6 नवंबर को है। खरना के दिन व्रती एक समय मीठा भोजन करने की परम्परा का पालन करेंगी। इस दिन गुड़ से बनी चावल की खीर खाई जाती है। इस प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है। इस प्रसाद को खाने के बाद व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन नमक नहीं खाया जाता है।
उगते सूर्य की तिथि:चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण होता है। इस साल 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
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