बिहार: बिहार सरकार के जातियों की गिनती मामले पर पटना हाईकोर्ट में बहस पूरी हो गई है। और फैसला सुरक्षित कर लिया गया है। अब गुरुवार को आदेश आने की संभावना है। बहस के दौरान महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार को गणना करने का अधिकार है। राज्य में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों समेत जन्म और मृत्यु की भी गणना करनी है। उन्होने कहा कि सरकारी लाभ लेने के लिए सभी अपना जाति बताने के लिए तैयार रहते हैं। नगर निकायों और पंचायत चुनाव में पिछड़ी जातियों को कोई आरक्षण नहीं है। ईबीसी को 20 प्रतिशत, 16 प्रतिशत एससी और एक प्रतिशत एसटी को आरक्षण है।उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है। राज्य सरकार 13 प्रतिशत और आरक्षण दे सकती हैं।
जातीय गणना का मुट्ठीभर लोग कर रहे विरोध- महाधिवक्ता
बहस के दौरान उन्होने कहा कि 17 प्रश्नों में से किसी भी प्रश्न से किसी की गोपनीयता भंग नहीं हो रही हैं। मुट्ठी भर लोग इसका विरोध कर रहे हैं।राज्य के अधिकांश लोगो में अपना जाति बताने की होड़ लगी हुई है। लोग स्वेच्छा से सभी 17 प्रश्नों का जबाब दे रहे हैं। इससे पहले कल हुई बहस में पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के विनोद चन्द्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने सुनवाई की। आवेदक की ओर से अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव और धनंजय कुमार तिवारी ने पक्ष रखते हुए कहा कि प्रदेश में जातीय गणना क्यों कराई जा रही है, इस बारे में कहीं कोई जिक्र नहीं किया गया है। अधिवक्ता दीनू कुमार और रितिका रानी ने कोर्ट को बताया कि इसके लिए आकस्मिक निधि से 1500 करोड़ खर्च होने की बात कही गई है, जबकि इससे फंड निकालने के पूर्व कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना अनिवार्य है। अधिवक्ता एमपी दीक्षित ने जातीय गणना में मोटर सहित कई अन्य बातों की जानकारी मांगे जाने पर सवाल खड़े किए थे।
दोनों सदन में सर्वसम्मति से पास हुआ प्रस्ताव
सभी अर्जी का विरोध करते हुए महाधिवक्ता पी के शाही ने कहा कि विधान सभा और परिषद में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित होने के बाद जातीय गणना कराने का निर्णय लिया गया। कैबिनेट ने उसी के मद्देनजर गणना कराने पर अपनी सहमति दी। यह राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है। इसके लिए बजटीय प्रावधान किया गया। उन्होंने कहा कि आकस्मिक निधि से एक पैसा खर्च नहीं किया गया है।
कल पूरी नहीं हो सकी थी बहस
पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के लिए कोर्ट ने सर्वे कराने की बात राज्य सरकार को कही है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भी महाधिवक्ता से जानना चाहा कि जब दोनों सदन की सहमति थी तो कानून क्यों नहीं बनाया। इसपर महाधिवक्ता शाही ने कहा कि बगैर कानून बनाए भी राज्य सरकार को नीतिगत निर्णय लेने और गणना कराने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि यह एक सर्वे है और किसी को भी जाति बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है। पइस मामले की सुनवाई पहले सोमवार को होनी थी, लेकिन राज्य सरकार की ओर से जवाबी हलफनामा रिकॉर्ड पर नहीं होने के कारण मंगलवार की तारीख मिल गई थी। लेकिन बहस पूरी नहीं हो सकी। जिसके चलते आज भी सुनवाई हुई।
SC ने याचिकाकर्ता को HC जाने को कहा था
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस टीएस नरसिम्हा ने जातिगत गणना पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की थी। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को आदेश दिया कि वे पहले हाईकोर्ट में जाएं। अगर वे निचली अदालत के फैसले से संतुष्ट नहीं होते हैं तो फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
जनवरी में शुरु हुई जातीय गणना
बिहार में जनवरी 2023 में जातीय गणना की शुरुआत हुई थी। पहले चरण में मकानों की गिनती की गई। इसके बाद 15 अप्रैल को जाति गणना का दूसरा चरण शुरू हुआ, जिसके 15 मई तक पूरा होने के आसार हैं। दूसरे चरण में प्रगणक घर-घर जाकर लोगों से जाति के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक स्थिति से जुड़े सवाल पूछ रहे हैं। नीतीश सरकार भारी भरकम खर्च के साथ जातीय गणना करा रही है।
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